Tuesday, February 14, 2012

भारतीय चक्रवाती तूफान एवं जलवायु परिवर्तन पर पहला अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन मस्‍कट, ओमान में 8-11 मार्च 2009 को हुआ था...

भारतीय समुद्री क्षेत्र में कटिबंधीय चक्रवाती तूफान एवं जलवायु परिवर्तन पर विश्‍व मौसम विज्ञान संबंधी संगठन-डब्‍ल्‍युएमओ का दूसरा अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन शुरू हो रहा है। तीन दिनों तक चलने वाले इस सम्‍मेलन का आयोजन विश्‍व मौसम संगठन के सहयोग से भारतीय मौसम विभाग, भू-विज्ञान मंत्रालय कर रहा है, जिसका उद्देश्‍य चक्रवाती तूफानों के आने के वैज्ञानिक आधार और इसके बुरे प्रभावों से बचने में आ रही अड़चनों से निपटने के उपायों पर चर्चा करना है। भारतीय चक्रवाती तूफान एवं जलवायु परिवर्तन पर पहला अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन मस्‍कट, ओमान में 8-11 मार्च 2009 को हुआ था।

कटिबंधीय चक्रवाती तूफान एक विध्‍वंसक प्राकृतिक आपदा है, जिसकी वजह से पिछले 50 वर्षों में विश्‍वभर में पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। पिछले 300 वर्षों के दौरान विश्‍वभर में आए चक्रवाती तूफानों में से 75 फीसदी से अधिक तूफानों में 5000 या इससे अधिक लोगों की मौत उत्‍तर भारतीय समुद्री इलाकों में हुई। इस क्षेत्र में चक्रवाती तूफानों से इतनी बड़ी जनहानि यहां की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के अलावा भौगोलिक स्थितियों, आंकलन की बाध्‍यता, पूर्वानुमान व्‍यवस्‍था, पूर्व चेतावनी व्‍यवस्‍था और आपदा प्रबंधन प्रक्रियाओं में कमी की वजह से हुई।

चक्रवाती तूफानों के उत्‍पन्‍न होने की स्थिति उसकी तीव्रता एवं गति और भारी बारिश, आंधी, समुद्री लहर और तटीय सैलाब जैसी इससे जुड़ी विकट प्राकृतिक स्थितियों को समझना भी वैश्विक जलवायु परिवर्तन की स्थिति में काफी महत्‍वपूर्ण रहा है। धरती के बढ़ते तापमान के रुख के संदर्भ में चक्रवाती तूफानों के ऊपरी गुणों की जांच करना काफी रूचिकर होगा। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल-आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट में जलवायु में गर्माहट के साथ विभिन्‍न समुद्री इलाकों में चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में बढ़ोत्‍तरी का आंकलन किया गया है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी सहित भारतीय समुद्री क्षेत्र के तटीय इलाके उच्‍च जनसंख्‍या घनत्‍व की वजह से सुरक्षा के लिहाज से बेहद ध्‍यान देने योग्‍य हैं।

इस सम्‍मेलन का उद्देश्‍य भारतीय समुद्री इलाकों से सटे देशों में चक्रवाती तूफानों पर जलवायु परिवर्तन के विज्ञान संबंधी प्रभाव के अध्‍ययन को बढ़ावा देना है। सम्‍मेलन में पेश होने वाले दस्‍तावेजों से भारतीय समुद्री क्षेत्र में पूर्वानुमान और चेतावनी व्‍यवस्‍था के संचालन, भारतीय समुद्री चक्रवाती तूफानों के सामाजिक प्रभाव, आपदा से निपटने की तैयारी का आंकलन और चक्रवाती तूफानों की रोक और उसकी गति में कमी जैसे उपाय करने में मदद मिलेगी। सम्‍मेलन में इस तरह के मुद्दों पर बड़ी संख्‍या में कार्यशालाएं और विशेषज्ञों की चर्चा भी होगी। जलवायु परिवर्तन पर भारतीय समुद्री चक्रवाती क्षेत्रों से जुड़े देशों से प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और अंतर्राष्‍ट्रीय अनुसंधान समुदायों से जुड़े लोग दस्‍तावेज पेश करेंगे। उम्‍मीद की जाती है कि सम्‍मेलन में सभी बड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए एक आंकलन वक्‍तव्‍य जारी होगा। ऐसा अनुमान है कि सम्‍मेलन से निकले नतीजों और सिफारिशों को 2014 में जारी होने वाली आईपीसीसी की पांचवीं आकलन रिपोर्ट-एआर5 को दिया जाएगा। इस सम्‍मेलन की सभी बातों को डब्‍ल्‍युएमओ सम्‍मेलन प्रक्रियाएं के तहत प्रकाशित किया जाएगा।

सम्‍मेलन में अनुसंधान और मौसम विज्ञान संबंधी पर्यावरण कार्य क्षेत्र से जलवायु परिवर्तन और चक्रवाती तूफानों के जानकार एक साथ जुटेंगे, जो चक्रवाती तूफानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर डब्‍ल्‍युएमओ विशेषज्ञ दल के आंकलन सहित नवीन अनुसंधानों पर विचार-विमर्श करेंगे। डब्‍ल्‍युएमओ विशेषज्ञ दल का यह आंकलन नेचर जिओ साइंस पत्रिका के मार्च 2010 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस सम्‍मेलन का मुख्‍य बिंदु भारतीय समुद्री इलाकों में चक्रवाती तूफानों और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध पर चर्चा कराना है। इसके साथ ही सम्‍मेलन में चक्रवाती तूफान से अर्थव्‍यवस्‍था, आधारभूत संरचना और समाज पर पड़ने वाले असर पर भी चर्चा होगी।

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