Wednesday, October 17, 2012

जिज्ञासा(JIGYASA) : देश में 4,662.56 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मैंग्रोव से...

जिज्ञासा(JIGYASA) : देश में 4,662.56 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मैंग्रोव से...: देश में 4,662.56 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मैंग्रोव से आच्छादित है। प्रतिवर्ष औसतन 3,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मैंग्रोव लगाए जाने का लक्ष्य रखा ...

जिज्ञासा(JIGYASA) : देश के करीब 650 जिलों के 158 इलाकों में भूजल खारा

जिज्ञासा(JIGYASA) : देश के करीब 650 जिलों के 158 इलाकों में भूजल खारा: देश के करीब 650 जिलों के 158 इलाकों में भूजल खारा हो चुका है, 267 जिलों के विभिन्न क्षेत्रों में फ्लोराइड की अधिकता है और 385 जिलों में नाइट...

जिज्ञासा(JIGYASA) : गंदे पानी के सिर्फ 10 फीसद हिस्से का शोधन हो पाता ...

जिज्ञासा(JIGYASA) : गंदे पानी के सिर्फ 10 फीसद हिस्से का शोधन हो पाता ...: गंदे पानी के सिर्फ 10 फीसद हिस्से का शोधन हो पाता है। देश भर में 90 से ज्यादा शहरों-कस्बों का 70 फीसदी गंदा पानी पेय जल के प्रमुख श्चोत नद...

जिज्ञासा(JIGYASA) : गंदे पानी के सिर्फ 10 फीसद हिस्से का शोधन हो पाता ...

जिज्ञासा(JIGYASA) : गंदे पानी के सिर्फ 10 फीसद हिस्से का शोधन हो पाता ...: गंदे पानी के सिर्फ 10 फीसद हिस्से का शोधन हो पाता है। देश भर में 90 से ज्यादा शहरों-कस्बों का 70 फीसदी गंदा पानी पेय जल के प्रमुख श्चोत नद...

Sunday, October 14, 2012

जिज्ञासा(JIGYASA) : वेस्‍टर्न घाट - विश्‍व धरोहर स्‍थल

जिज्ञासा(JIGYASA) : वेस्‍टर्न घाट - विश्‍व धरोहर स्‍थल: यूनेस्‍को विश्‍व धरोहर समिति ने 1 जुलाई 2012 को भारत के वेस्‍टर्न घाट को विश्‍व धरोहर स्‍थल में शामिल किया।वेस्‍टर्न घाट भूदृश्‍य के कुल 39 ...

Sunday, October 7, 2012

जिज्ञासा(JIGYASA) : आईएस-10500

जिज्ञासा(JIGYASA) : आईएस-10500: आईएस-10500 मानकों का देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आपूर्ति किए जाने वाले पेयजल की गुणवत्‍ता विशेषताओं के संदर्भ में पालन किया जाएगा. बीआईएस ...

जिज्ञासा(JIGYASA) : दाचीगाम राष्‍ट्रीय उद्यान

जिज्ञासा(JIGYASA) : दाचीगाम राष्‍ट्रीय उद्यान: दाचीगाम राष्‍ट्रीय उद्यान जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य का एक महत्‍व पूर्ण संरक्षि‍त क्षेत्र नेटवर्क है. श्रीनगर स्थित यह उद्यान आज विश्‍व के अद्वित...

Saturday, September 15, 2012

facts and opinion.....: Doha Climate Change Conference

facts and opinion.....: Doha Climate Change Conference: The 18th session of the Conference of the Parties to the UNFCCC and the 8th session of the Conference of the Parties serving as the Meeting ...

facts and opinion.....: Kyoto Protocol

facts and opinion.....: Kyoto Protocol: The Kyoto Protocol is an international agreement linked to the United Nations Framework Convention on Climate Change. The major feature of t...

Friday, September 14, 2012

जिज्ञासा(JIGYASA) : राष्ट्रीय जलनीति -2012

जिज्ञासा(JIGYASA) : राष्ट्रीय जलनीति -2012: राष्ट्रीय जलनीति -2012 में बड़े-बड़े बांधों की पुरजोर वकालत की गई है। नए संशोधित मसौदे में अप्रत्यक्ष रूप से निजीकरण की बात कही गई है। नए सं...

Sunday, September 9, 2012

जिज्ञासा(JIGYASA) : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण

जिज्ञासा(JIGYASA) : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण: बाघ संरक्षण गतिविधियों को मजबूती प्रदान करने के लिए 4.09.2006 से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्रा...

Thursday, July 12, 2012

हरित अर्थव्‍यवस्‍था

हरित अर्थव्‍यवस्‍था वह है जिसमें पर्यावरण को होने वाले खतरों और पारिस्थितिक कमियों को दूर करते हुए लोगों की भलाई हो सके और सामाजिक समानता कायम हो सके। हरित अर्थव्‍यवस्‍था वह है जिसमें सार्वजनिक और निजी निवेश करते समय इस बात को ध्‍यान में रखा जाए कि कार्बन उत्‍सर्जन और प्रदूषण कम से कम हो, ऊर्जा और संसाधनों की प्रभावोत्‍पादकता बढ़े और जो जैव विविधता और पर्यावरण प्रणाली की सेवाओं के नुकसान को रोकने में मदद करे।

अगर हरित अर्थव्‍यवस्‍था सामाजिक समानता और सभी को मिलाकर बनती है तो तकनीकी तौर पर आप भी इसमें शामिल हैं। इसलिए हमें एक ऐसी आर्थिक प्रणाली बनानी चाहिए जिसमें यह सुनिश्चित हो सके कि सभी लोगों की एक संतोषजनक जीवन स्‍तर तक पहुंच हो और व्‍यक्तिगत तथा सामाजिक विकास का अवसर मिले।

दुनिया पहले ही अपनी जैव विविधता का बहुत सा अंश खो चुकी है। वस्‍तुओं और खाद्य वस्‍तुओं की कीमतों पर दबाव समाज पर इसके नुकसान को बताते हैं। इसका जल्‍द से जल्‍द निदान किया जाना चाहिए क्‍योंकि प्रजातियों को नुकसान और पर्यावरण की दुर्दशा का सीधा सम्‍बन्‍ध मानवता की भलाई से है। आर्थिक वृद्धि और प्राकृतिक पारिस्थि‍की तंत्र का कृषि उत्‍पादन में रूपांतरण जारी रहेगा, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इस तरह का विकास प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के वास्‍तविक मूल्‍य को ध्‍यान में रखकर किया जाए।

द इकोनॉमिक्‍स ऑफ इकोसिस्‍टम एंड बायोडायवर्सिटी (टीईईडी) की रिपोर्ट के मुख्‍य निष्‍कर्ष थे कि कृषि के लिए रूपांतरण, बुनियादी ढांचे के विस्‍तार और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्‍वरूप 2000 में बचे हुए प्राकृतिक क्षेत्र का 11 प्रतिशत हम गंवा सकते हैं। इस समय जमीन का करीब 40 प्रतिशत कृषि के कम प्रभाव वाले स्‍वरूप में है। हो सकता है कि जैव विविधता के कुछ और नुकसान के साथ इसे गहन खेती में रूपांतरित कर दिया जाए। एक अनुमान के मुताबिक अकेले संरक्षित क्षेत्र में 45 अरब अमरीकी डॉलर का वार्षिक निवेश किया जाएगा।

कुछ क्षेत्रों में शहरों का तेजी से विकास हो रहा है, जबकि अन्‍य में, ग्रामीण इलाके शहरों का रूप ले रहे हैं। शहरों के भीतर प्राकृतिक वृद्धि और नौकरियों तथा अवसरों की तलाश में बड़ी संख्‍या में गांवों से शहरों की और पलायन का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा विकासशील देशों में देखने को मिल रहा है।

समृद्ध अर्थ्‍व्‍यवस्‍थाओं में शहरी इलाके धन-दौलत और संसाधनों के उपभोग और कार्बनडाइक्‍साइड के उत्‍सर्जन पर संकेन्द्रित रहे हैं। विश्‍व भर में सिर्फ 50 प्रतिशत आबादी पृथ्‍वी के 2 प्रतिशत से भी कम भाग पर रह रही है, शहरी इलाके 60 से 80 प्रतिशत ऊर्जा के इस्‍तेमाल और 75 प्रतिशत कार्बनडाइक्‍साइड उत्‍सर्जन पर संकेन्द्रित कर रहे हैं। इमारतें, परिवहन और उद्योग जिनसे शहर और शहरी इलाके बनते हैं- वैश्विक ऊर्जा-सम्‍बद्ध जीएचजी उत्‍सर्जनों का 25,22 और 22 प्रतिशत योगदान देते हैं।

कम घने शहर-जो कम प्रति व्‍यक्ति उत्‍सर्जन में मदद करते हैं- आर्थिक वृद्धि के लिए अच्‍छे हैं। विश्‍व की सबसे महत्‍वपूर्ण महानगरीय अर्थव्‍यवस्‍थाएं मात्र 12 प्रतिशत वैश्विक आबादी के साथ वैश्विक जीडीपी का 45 प्रतिशत बनाती है। घनीकरण पूंजी और बुनियादी सुविधाओं सड़कों, रेलवे, पानी और सीवेज प्रणाली की संचालन लागत को कम करती है। हरित शहरी कृषि में नगर निगम के बेकार पानी और अपशिष्‍ट का दोबारा इस्‍तेमाल किया जा सकता है, परिवहन लागत को कम किया जा सकता है, जैव विविधता और आर्द्र भूमि को संरक्षित किया जा सकता है और हरित पट्टी का बेहतर इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

लेकिन शहरों के विकास ने स्‍थानीय पर्यावरण की गुणवत्‍ता पर असर डाला है, साफ पानी और स्‍वच्‍छता के अभाव के कारण गरीब लोग प्रभावित हुए हैं। इसके परिणामस्‍वरूप बीमारियां बढ़ी हैं और आजीविका पर असर पडा है।

जोखिम को कम करने के उपायों में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मुंबई में 2005 में आई बाढ़ का कारण शहर की मीठी नदी का पर्यावरण संरक्षण नहीं करना माना जा रहा था। बाढ़ में 1000 से ज्‍यादा लोग मारे गए थे और शहर का जनजीवन अस्‍त-व्‍यस्‍त हो गया था।

गांवों से शहरी इलाकों की तरफ पानी भेजने के दौरान पानी का लीकेज गंभीर चिंता का विषय है। पाइपों के उन्नयन और उन्‍हें बदल देने से अनेक औद्योगिक शहरों में 20 प्रतिशत पीने का पानी बचाया जा सकता है। दिल्‍ली में पानी की जबरदस्‍त किल्‍लत से निपटने के लिए नगर निगम ने उन इमारतों में बारिश का पानी जमा करना अनिवार्य बना दिया जिनकी छत का क्षेत्र 100 वर्ग मीटर से ज्‍यादा है। अनुमान लगाया गया है कि प्रति वर्ष 76,500 मिलियन लीटर पानी जमीन पुर्नभरण के लिए उपलब्‍ध हो सकेगा। चेन्‍नई में शहरी जमीन के पानी के पुर्नभरण ने 1988 से 2002 के बीच जमीन के पानी का स्‍तर चार मीटर बढ़ा दिया।

हरित अर्थव्‍यवस्‍था में नवीकरणीय ऊर्जा उत्‍पादन और बिजली ऊर्जा वितरण, ऊर्जा दक्षत और भंडारण, आर्गेनिक खेती, हरित परिवहन और हरित इमारत जैसे विविध उद्यम शामिल हैं। ऊर्जा दक्ष विद्युत से लेकर बिजली से चलने वाली यात्री ट्रेनों, जैव ईंधन सभी कुछ इसमें सम्मिलित है। यह विभिन्‍न उद.यमों का विविध समूह है जो कम नुकसान पहुंचाने वाले हैं और अधिक समय तक टिक सकते हैं।

Tuesday, February 14, 2012

भारतीय चक्रवाती तूफान एवं जलवायु परिवर्तन पर पहला अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन मस्‍कट, ओमान में 8-11 मार्च 2009 को हुआ था...

भारतीय समुद्री क्षेत्र में कटिबंधीय चक्रवाती तूफान एवं जलवायु परिवर्तन पर विश्‍व मौसम विज्ञान संबंधी संगठन-डब्‍ल्‍युएमओ का दूसरा अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन शुरू हो रहा है। तीन दिनों तक चलने वाले इस सम्‍मेलन का आयोजन विश्‍व मौसम संगठन के सहयोग से भारतीय मौसम विभाग, भू-विज्ञान मंत्रालय कर रहा है, जिसका उद्देश्‍य चक्रवाती तूफानों के आने के वैज्ञानिक आधार और इसके बुरे प्रभावों से बचने में आ रही अड़चनों से निपटने के उपायों पर चर्चा करना है। भारतीय चक्रवाती तूफान एवं जलवायु परिवर्तन पर पहला अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन मस्‍कट, ओमान में 8-11 मार्च 2009 को हुआ था।

कटिबंधीय चक्रवाती तूफान एक विध्‍वंसक प्राकृतिक आपदा है, जिसकी वजह से पिछले 50 वर्षों में विश्‍वभर में पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। पिछले 300 वर्षों के दौरान विश्‍वभर में आए चक्रवाती तूफानों में से 75 फीसदी से अधिक तूफानों में 5000 या इससे अधिक लोगों की मौत उत्‍तर भारतीय समुद्री इलाकों में हुई। इस क्षेत्र में चक्रवाती तूफानों से इतनी बड़ी जनहानि यहां की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के अलावा भौगोलिक स्थितियों, आंकलन की बाध्‍यता, पूर्वानुमान व्‍यवस्‍था, पूर्व चेतावनी व्‍यवस्‍था और आपदा प्रबंधन प्रक्रियाओं में कमी की वजह से हुई।

चक्रवाती तूफानों के उत्‍पन्‍न होने की स्थिति उसकी तीव्रता एवं गति और भारी बारिश, आंधी, समुद्री लहर और तटीय सैलाब जैसी इससे जुड़ी विकट प्राकृतिक स्थितियों को समझना भी वैश्विक जलवायु परिवर्तन की स्थिति में काफी महत्‍वपूर्ण रहा है। धरती के बढ़ते तापमान के रुख के संदर्भ में चक्रवाती तूफानों के ऊपरी गुणों की जांच करना काफी रूचिकर होगा। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल-आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट में जलवायु में गर्माहट के साथ विभिन्‍न समुद्री इलाकों में चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में बढ़ोत्‍तरी का आंकलन किया गया है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी सहित भारतीय समुद्री क्षेत्र के तटीय इलाके उच्‍च जनसंख्‍या घनत्‍व की वजह से सुरक्षा के लिहाज से बेहद ध्‍यान देने योग्‍य हैं।

इस सम्‍मेलन का उद्देश्‍य भारतीय समुद्री इलाकों से सटे देशों में चक्रवाती तूफानों पर जलवायु परिवर्तन के विज्ञान संबंधी प्रभाव के अध्‍ययन को बढ़ावा देना है। सम्‍मेलन में पेश होने वाले दस्‍तावेजों से भारतीय समुद्री क्षेत्र में पूर्वानुमान और चेतावनी व्‍यवस्‍था के संचालन, भारतीय समुद्री चक्रवाती तूफानों के सामाजिक प्रभाव, आपदा से निपटने की तैयारी का आंकलन और चक्रवाती तूफानों की रोक और उसकी गति में कमी जैसे उपाय करने में मदद मिलेगी। सम्‍मेलन में इस तरह के मुद्दों पर बड़ी संख्‍या में कार्यशालाएं और विशेषज्ञों की चर्चा भी होगी। जलवायु परिवर्तन पर भारतीय समुद्री चक्रवाती क्षेत्रों से जुड़े देशों से प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और अंतर्राष्‍ट्रीय अनुसंधान समुदायों से जुड़े लोग दस्‍तावेज पेश करेंगे। उम्‍मीद की जाती है कि सम्‍मेलन में सभी बड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए एक आंकलन वक्‍तव्‍य जारी होगा। ऐसा अनुमान है कि सम्‍मेलन से निकले नतीजों और सिफारिशों को 2014 में जारी होने वाली आईपीसीसी की पांचवीं आकलन रिपोर्ट-एआर5 को दिया जाएगा। इस सम्‍मेलन की सभी बातों को डब्‍ल्‍युएमओ सम्‍मेलन प्रक्रियाएं के तहत प्रकाशित किया जाएगा।

सम्‍मेलन में अनुसंधान और मौसम विज्ञान संबंधी पर्यावरण कार्य क्षेत्र से जलवायु परिवर्तन और चक्रवाती तूफानों के जानकार एक साथ जुटेंगे, जो चक्रवाती तूफानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर डब्‍ल्‍युएमओ विशेषज्ञ दल के आंकलन सहित नवीन अनुसंधानों पर विचार-विमर्श करेंगे। डब्‍ल्‍युएमओ विशेषज्ञ दल का यह आंकलन नेचर जिओ साइंस पत्रिका के मार्च 2010 के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस सम्‍मेलन का मुख्‍य बिंदु भारतीय समुद्री इलाकों में चक्रवाती तूफानों और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध पर चर्चा कराना है। इसके साथ ही सम्‍मेलन में चक्रवाती तूफान से अर्थव्‍यवस्‍था, आधारभूत संरचना और समाज पर पड़ने वाले असर पर भी चर्चा होगी।

भूकंप

एक भूकंप पृथ्वी की परत से ऊर्जा के अचानक उत्पादन के परिणामस्वरूप आता है जो भूकंपी तरंगें उत्पन्न करता है.भूकंप का रिकार्ड एक सीस्मोमीटर के साथ रखा जाता है, जो सीस्मोग्राफ भी कहलाता है. एक भूकंप का क्षण परिमाण पारंपरिक रूप से मापा जाता है, या सम्बंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है, ३ या कम परिमाण की रिक्टर तीव्रता का भूकंप अक्सर इम्परसेप्टीबल होता है और ७ रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति होता है. झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है.

पृथ्वी की अंदरूनी सतह विशालकाय चट्टानों की प्लेट से बनी हुई है। इनमें हमेशा हलचल होती रहती है। जब कभी ये प्लेटें आपस में टकराती हैं तो कंपन पैदा होता है और लोगों को भूकंप का अहसास होता है। प्लेटों के दरकने का कारण बरसात के मौसम में नदियों में पानी भरना भी हो सकता है, क्योंकि कमजोर प्लेटें ज्यादा पानी का दबाव सहन नहीं कर पातीं। पृथ्वी के अंदर ऊर्जा निर्मुक्त होने से भी प्लेटों में हलचल होती है और भूचाल आ जाता है। सिक्किम में हाल ही में आया भूकंप यूरेशिया यानी यूरोप और एशिया की चट्टानों की प्लेटों की आपसी टकराहट का नतीजा माना जा रहा है। इस भूकंप की गहराई 20 किलोमीटर नीचे थी। इसलिए इससे ज्यादा नुकसान पहुंचा। भूंकप की संवेदनशीलता के मद्देनजर देश के भू-भागों को जोन एक से लेकर पांच तक बांटा गया है। इनमें जोन पांच भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है। भूकंप की तीव्रता मापने के लिए फिलहाल रिक्टर और मारकेली स्केल का इस्तेमाल किया जाता है। रिक्टर स्केल पर पृथ्वी में कंपन के आधार पर भूकंप की तीव्रता मापी जाती है, वहीं मारकेली स्केल पर भूकंप से हुई क्षति के आधार पर तीव्रता का आकलन किया जाता है। 1935 में चार्ल्स रिक्टर ने भूकंप की तीव्रता मापने का स्केल तैयार किया था। वैसे भूकंप की जानकारी हासिल करने के लिए चीन में सबसे पहले सिस्मोस्कोप का आविष्कार किया गया। चीनी दार्शनिक चेंग हेंग ने ईसा पूर्व 132 में इस यंत्र का ईजाद किया था। रिक्टर पैमाने के विकास के बाद 22 मई, 1960 को दुनिया का सर्वाधिक विनाशकारी जलजला चिली में आया था। तब इसकी तीव्रता 9.5 मापी गई थी। यूं तो दुनिया में रिक्टर पैमाने पर तीन तक की तीव्रता वाले भूकंप लगभग रोजाना ही दर्ज किए जाते हैं, पर छह से ऊपर की तीव्रता वाले भूकंप क्षेत्र विशेष के लिए विनाशकारी साबित होते हैं। सिस्मोग्राफ के आंतरिक हिस्से में सिस्मोमीटर लगा होता है, जो पेंडुलम की तरह होता है। सिस्मोग्राफ वह यंत्र है, जिसके जरिए भूकंप के दौरान कंपन को मापा जाता है। इस यंत्र का विकास 1890 में किया गया था। अब दुनिया में कहीं भी भूकंप आए, इसकी पूरी जानकारी तुरंत सिस्मोग्राफिक नेटवर्क के जरिए मिल जाती है, चाहे अभिकेंद्र यानी एपिसेंटर की जानकारी हो या तीव्रता या उसकी गहराई की। खास बात यह है कि भूकंप का अभिकेंद्र सतह से जितना नीचे होगा, भूकंप उतना ही कम खतरनाक होगा।

वैज्ञानिकों ने धरती की सतह के काफ़ी भीतर आने वाले भूंकपों की ही तरह नकली भूकंप प्रयोगशाला में पैदा करने में सफलता पाई है.ऐसे भूकंप आमतौर पर धरती की सतह से सैंकड़ों किलोमीटर अंदर होते हैं, और वैज्ञानिकों की तो यह राय है कि ऐसे भूकंप वास्तव में होते नहीं हैं.वैज्ञानिकों ने इन कथित भूकंपों को प्रयोगशाला में इसलिए पैदा किया कि इसके ज़रिए धरती की अबूझ पहेलियों को समझा जा सके.ताज़ा प्रयोगों से धरती पर आए भीषणतम भूकंपो में से कुछ के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सकेगी.अधिकांश भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किलोमीटर अंदर होती है.

सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने और कम दबाव के कारण भंगुर होती है. ऐसी स्थिति में जब अचानक चट्टानें गिरती हैं तो भूकंप आता है.एक अन्य प्रकार के भूकंप सतह से 100 से 650 किलोमीटर नीचे होते हैं.इतनी गहराई में धरती इतनी गर्म होती है कि सिद्धांतत: चट्टानें द्रव रूप में होनी चाहिए, यानि किसी झटके या टक्कर की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए.लेकिन ये चट्टानें भारी दबाव के माहौल में होती हैं.इसलिए यदि इतनी गहराई में भूकंप आए तो निश्चय ही भारी ऊर्जा बाहर निकलेगी।
धरती की सतह से काफ़ी गहराई में उत्पन्न अब तक का सबसे बड़ा भूकंप 1994 में बोलीविया में रिकॉर्ड किया गया. सतह से 600 किलोमीटर दर्ज इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.3 मापी गई थी.हालाँकि वैज्ञानिक समुदाय का अब भी मानना है कि इतनी गहराई में भूकंप नहीं आने चाहिए क्योंकि चट्टान द्रव रूप में होते हैं.वैज्ञानिकों का मानना है कि विभिन्न रासायनिकों क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते होंगे.अत्यंत गहराई में आने वाले भूकंपों के बारे में ताज़ा अध्ययन यूनवर्सिटी कॉलेज, लंदन के मिनरल आइस एंड रॉक फिज़िक्स लैबोरेटरी में किया गया है.