Saturday, October 22, 2011

एक योजना के तहत लवणीय जल को मीठे जल में बदल कर पेय जल की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है .


पानी का रंग कैसा! आज पता ही नहीं चलता .कभी शुद्ध हवा और पानी मिला करता था ,हमारे बुजुर्ग बताते है की वे  कुआँ और तालाब का पानी भी पी  लेते थे . हालांकि वह कोई अच्छा काम नहीं था फिर भी इतना तो तय है, की आज की तरह पानी दूषित तो नहीं रहता होगा .
अभी एक योजना के तहत लवणीय जल को मीठे जल में बदल कर पेय जल की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है .यह बहुत ही खर्चीला पड़ेगा पर इसके अलावा हमें कोई दूसरा उपाय छोड़ा कहाँ है ? पर इतना खर्च एक गरीब राष्ट्र के लिए करना संभव नहीं है .अतः यह तय है की भविष्य में गरीबों को शुद्ध पानी नहीं मिलने वाला .
बोतल बंद पानी का दाम भी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ ही रहा है और भूमिगत पानी का क्या हाल है ? एक अनजान आदमी भी बता सकता है .

Thursday, October 13, 2011

मॉनसून


भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक अजीत त्यागी और विभाग के वैज्ञानिक डॉ एस डी .अत्री द्वारा की गई एक स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1941 से 2000 के बीच मॉनसून के क्रियाकलापों में मामूली बदलाव आया है जिसके तहत इसका आगमन और इसकी वापसी दोनोंकी तारीखें आगे खिसकी हैं और मॉनसून के ड्यूरेशन में करीब एक सप्ताह की बढ़ोतरी हुई है।त्यागी का कहना है कि नए बदलावों के हिसाब से नई तारीखें तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दीगई है लेकिन इसमें करीब एक साल का समय और लगेगा। 
वर्ष 1971 से 2000 के बीच जम्मू कश्मीर में मॉनसून के आगमन की तय तारीख के मुकाबले14 दिनों का अंतर आया है। पश्चिमी और उत्तर पश्चिमी भारत में 1.5 सप्ताह की देरी से मॉनसून दस्तक दे रहा है। इसकी वापसी की तारीख भी 1.5 सप्ताह आगे खिसक गई है। करीब सभी मटीरियोलॉजिकल सब डिवीजनों में साउथवेस्ट मॉनसून के ड्युरेशन में भी पिछले 60 सालों केदौरान बढ़ोतरी दर्ज हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तारीखों में बदलाव की जरूरत काफी पहलेसे ही महसूस की जा रही थी। विभाग ने बहुत देर से इस पर विचार करना शुरू किया है।

Wednesday, October 12, 2011

लिंग अनुपात

देश की 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश के लिंग अनुपात में सुधार हुआ है और यह वर्ष 2001 के 933 से बढ़कर 2011 में 940 हो गया है। तथापि बाल लिंगानुपात अभी भी अधिक बना हुआ है। वर्ष 2001 में 6 वर्ष तक आयु के बच्‍चों में बाल लिंगानुपात 927 था, जो 2011 में 914 हो गया है। संतोषजनक बात यह है कि हरियाणा में सामूहिक लिंगानुपात में सुधार आया है और यह 2011 के 861 से बढ़कर 2011 में 877 हो गया है। इसके साथ ही राज्‍य में इसी अवधि के दौरान बाल लिंगानुपात की स्‍थिति में सुधार हुआ है और यह इस अवधि में 819 से बढ़कर 830 हो गया है। महिला तथा बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्‍णा तीरथ ने आज लोक सभा में यह जानकारी दी। उन्‍होंने बताया कि सरकार ने स्‍त्री भ्रूण हत्‍या रोकने और लिंगानुपात में सुधार के लिए एक बहुस्‍तरीय रणनीति पर काम शुरू किया है, जिनमें विधिक कार्यवाइयां, सलाह, जागरूकता विकास और महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक सशक्‍तीकरण के कार्यक्रम शामिल हैं। मंत्री महोदया ने आगे कहा कि विधिक कार्रवाइयों में गर्भाधान पूर्व तथा पूर्व नैदानिक तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 शामिल है, जिसके अंतर्गत लिंग चयन आधारित गर्भपात दंडनीय है।

ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता का दायरा तेजी से बढ़ा ....

ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता का दायरा जुलाई 2011 में 73 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है जो 2001 की जनगणना के अनुसार केवल 21.9 प्रतिशत था। इस समय देश के 607 ग्रामीण जिलों में सरकार द्वारा चलाये जा रहे पूर्ण स्वच्छता अभियान का उद्देश्य खुले में मल त्याग करने की आदत को समाप्त करना और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करना है।

ओलिव रिडले कछुओं का संरक्षण


ओलिव रिडले कछुओं का संरक्षण
 उड़ीसा सरकार, उड़ीसा तट के समीप सुरक्षा गतिविधियां कर रही है। उड़ीसा राज्‍य सरकार ने सूचित किया है कि उड़ीसा तट और तटीय जल क्षेत्र पर कानूनों के संभव उल्‍लंघन हेतु कारण निम्‍नलिखित हैं:

अस्‍तरोंग का तटीय जल क्षेत्र समुद्री अभयारण्‍य नहीं है। इस क्षेत्र में राज्‍य मात्सियकी अधिनियम जैसे उड़ीसा समुद्री मत्‍स्‍यन विनियमन अधिनियम (ओएमएफआरए), 1982 और उड़ीसा समुद्री मत्‍स्‍यन विनियमन नियम, 1983 के अंतर्गत तटीय रेखा से 10 किलोमीटर की दूरी के अंदर, केवल नवंबर से अगले वर्ष के मई माह तक, कुछ समय के लिए भीशीनी तरीके से मत्‍स्‍यन को प्रतिबंधित किया जाता है। उन्‍होंने बताया कि गहीरमाथा को समुद्री अभयारण्‍य के रूप में नामोदिष्‍ट किया गया है और गश्‍ती कार्यों और अन्‍य सुरक्षा उपायों के लिए कदम उठाए गए हैं। तथापि, यह क्षेत्र विशाल है (1408 वर्ग किलोमीटर से अधिक) और यहां मछली पकड़ने का अत्‍यधिक दबाव है जिसमें स्‍थानीय जहाजों के साथ-साथ, पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, बांग्‍लादेश और थाईलैंड आदि भी शामिल हैं, यहां अक्‍सर कानून का उल्‍लंघन होता है किंतु जहां तक सभंव हो, उपलब्‍ध जनशक्ति और संसाधनों से इन्‍हें निपटाया जा रहा है।

उड़ीसा सरकार द्वारा ओलिव रिडले कछुओं की ऋतु के दौरान, उड़ीसा तट पर अवैध रूप से मछली पकड़ने पर कड़ी नजर रखने और गहन निगरानी के लिए कदम उठाए गए हैं। 
गंगा कार्य योजना
पर्यावरण एवं वन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्रीमती जयंती नटराजन ने कल राज्‍य सभा में एक लि‍खि‍त प्रश्‍न के उत्‍तर में यह जानकारी दी कि‍मलजल के अवरोधन और वि‍पथन, मलजल शोधन संयंत्रों की स्‍थापना, नि‍म्‍न लागत स्‍वच्‍छता नि‍र्माण कार्यों आदि‍जैसी स्‍कीमों के क्रि‍यान्‍वयन के माध्‍यम से गंगा नदी में प्रदूषण उपशमन गति‍वि‍धि‍यां प्रारंभ करने के लि‍ए वर्ष 1985 से गंगा कार्य योजना (जीएपी) क्रि‍यान्‍वि‍त की जा रही है । इस योजना के अंतर्गत अभी तक 896.05 करोड़ रुपये व्‍यय कि‍ए गए हैं और 1064 एमएलडी की मलजल शोधन क्षमता सृजि‍त की गई है ।

फरवरी 2009 में, केन्‍द्र सरकार ने समग्र नदी बेसि‍न दृष्‍टि‍कोण को अंगीकार करने के द्वारा गंगा नदी के प्रदूषण का प्रभावी उपशमन और गंगा नदी के संरक्षण को सुनि‍श्‍चि‍त करने के उद्देश्‍य से एक अधि‍कार सम्‍पन्‍न आयोजना, वि‍त्‍त-प्रबंधन, मॉनीटरन और समन्‍वयन प्राधि‍करण के रूप में राष्‍ट्रीय गंगा नदी बेसि‍न प्राधि‍करण (एनजीआरबीए) का गठन कि‍या । इस प्राधि‍करण ने नि‍र्णय लि‍या कि‍मि‍शन स्‍वच्‍छ गंगा के अंतर्गत यह सुनि‍श्‍चि‍त कि‍या जाएगा कि‍वर्ष 2020 तक कोई भी अशोधि‍त नगरीय मलजल और औद्योगि‍क बहि‍:स्राव, गंगा में न बहाया जाए और आवश्‍यक शोधन और मल-नि‍र्यास अवसंरचना सृजि‍त करने के लि‍ए अपेक्षि‍त नि‍वेश, केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के बीच समुचि‍त रूप से सहभाजि‍त कि‍ये जाएंगे । 
 मरुस्‍थलीकरण, भू-अवक्रमण और सूखे पर राष्‍ट्रीय रि‍पोर्ट तैयार तथा संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (यूएनसीसीडी) सचि‍वालय को आवधि‍क रूप से प्रस्‍तुत की गई है । आज की तारीख तक, यूएनसीसीडी सचि‍वालय को 4 राष्‍ट्रीय रि‍पोर्टें प्रस्‍तुत की गई हैं - पहली रि‍पोर्ट-2000, दूसरी रि‍पोर्ट-2002, तीसरी रि‍पोर्ट-2006 और चौथी रि‍पोर्ट - 2010 ।

इन रि‍पोर्टों को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड कि‍या गया है । ब्‍यौरा नि‍म्‍नवत है -

कुल शुष्‍क भूमि‍क्षेत्र : 2283 लाख हेक्‍टेयर

शुष्‍क - 508 लाख हेक्‍टेयर

अर्द्ध-शुष्‍क - 1234 लाख हेक्‍टेयर

सूखी उप-आर्द्र-541 लाख हेक्‍टेयर

शुष्‍क भूमि‍के अंतर्गत देश के भू-क्षेत्र की प्रति‍शतता 69.6 प्रति‍शत है । भारत में भूमि‍अवक्रमण की प्रक्रि‍या से गुजर रहा कुल क्षेत्र 10548 लाख हेक्‍टेयर है, जि‍सकी भारत के कुल भू-क्षेत्र की 32.07 प्रति‍शतता है ।

मरूस्‍थलीकरण और भूमि‍अवक्रमण हेतु प्रमुख कारण जल अपरदन, वानस्‍पति‍क अवक्रमण, वायु अपरदन, लवणीयता जल भराव, संदूषण, असतत भूमि‍उपयोग और अनुपयुक्‍त कृषि‍और फसलों की प्रक्रि‍या आदि‍हैं 


Thursday, October 6, 2011

SCIENCE AND TECHNOLOGY: Global warming will affect agricultural productivi...

SCIENCE AND TECHNOLOGY: Global warming will affect agricultural productivi...: Global warming will affect agricultural productivity adversely in regions where the food needs are the greatest. A one degree rise in global...

Sunday, September 18, 2011

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ONLY NEWS: भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों , नेपाल , भूटान , बां...: भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों , नेपाल , भूटान , बांग्लादेश में रविवार शाम आए तेज भूकंप के झटकों ने क्या तबाही मचाई है. भारत में अब तक 27 की म...

Thursday, September 15, 2011

प्राकृतिक आपदा...

मौसम में बदलाव के कारण ज्यादा बड़े स्तर पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी तंत्र बनाया जाए, नही तो तबाही और ज्यादा होगी। घनी आबादी वाले और खतरे की आशंका से जूझ रहे इलाकों में सरकारी तंत्र और स्थानीय लोगों को सुविधाएं और प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि आपदा के बाद पुनर्वास के दौरान तेजी बनी रहे और काम की निगरानी भी हो।

हमारी पर्यावरण चिंताओं पर यह निराशावादी सोच इतनी हावी होती जा रही है कि अब यह कहना फैशन बन गया है कि जनसंख्या यूं ही बढ़ती रही तो 2030 तक हमें रहने के लिए दो ग्रहों की जरूरत होगी।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई अन्य संगठन इस फुटप्रिंट को आधार बनाकर जटिल गणनाएं करते रहे हैं। उनके मुताबिक हर अमेरिकी इस धरती का 9।4 हेक्टेयर इस्तेमाल करता है। हर यूरोपीय व्यक्ति 4.7 हेक्टेयर का उपयोग करता है। कम आय वाले देशों में रहने वाले लोग सिर्फ एक हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर हम सामूहिक रूप से 17.5 अरब हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम एक अरब इंसानों को धरती पर जीवित रहने के लिए 13.4 हेक्टेयर ही उपलब्ध है।
सभी तरह के उत्सर्जन में 50 फीसदी की कटौती से भी हम ग्रीन हाउस गैसों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। एरिया एफिशियंशी के लिहाज से कार्बन कम करने के लिए जंगल उगाना बहुत प्रभावी उपाय नहीं है। इसके लिए अगर सोलर सेल्स और विंड टर्बाइन लगाए जाएं, तो वे जंगलों की एक फीसदी जगह भी नहीं लेंगे। सबसे अहम बात यह है कि इन्हें गैर-उत्पादक क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। मसलन, समुद में विंड टर्बाइन और रेगिस्तान में सोलर सेल्स लगाए जा सकते हैं।
जर्नल 'साइंस' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों को तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उपज में कमी की वजह से खाद्य संकट का सामना करना पड़ेगा। तापमान में बढ़ोतरी से जमीन की नमी प्रभावित होगी, जिससे उपज में और ज्यादा गिरावट आएगी। इस समय ऊष्ण कटिबंधीय और उप-ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में तीन अरब लोग रह रहे हैं।एक अनुमान के मुताबिक 2100 तक यह संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्चरों के अनुसार, दक्षिणी अमेरिका से लेकर उत्तरी अर्जेन्टीना और दक्षिणी ब्राजील, उत्तरी भारत और दक्षिणी चीन से लेकर दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और समूचा अफ्रीका इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।