Thursday, September 15, 2011

प्राकृतिक आपदा...

मौसम में बदलाव के कारण ज्यादा बड़े स्तर पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी तंत्र बनाया जाए, नही तो तबाही और ज्यादा होगी। घनी आबादी वाले और खतरे की आशंका से जूझ रहे इलाकों में सरकारी तंत्र और स्थानीय लोगों को सुविधाएं और प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि आपदा के बाद पुनर्वास के दौरान तेजी बनी रहे और काम की निगरानी भी हो।

हमारी पर्यावरण चिंताओं पर यह निराशावादी सोच इतनी हावी होती जा रही है कि अब यह कहना फैशन बन गया है कि जनसंख्या यूं ही बढ़ती रही तो 2030 तक हमें रहने के लिए दो ग्रहों की जरूरत होगी।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कई अन्य संगठन इस फुटप्रिंट को आधार बनाकर जटिल गणनाएं करते रहे हैं। उनके मुताबिक हर अमेरिकी इस धरती का 9।4 हेक्टेयर इस्तेमाल करता है। हर यूरोपीय व्यक्ति 4.7 हेक्टेयर का उपयोग करता है। कम आय वाले देशों में रहने वाले लोग सिर्फ एक हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर हम सामूहिक रूप से 17.5 अरब हेक्टेयर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम एक अरब इंसानों को धरती पर जीवित रहने के लिए 13.4 हेक्टेयर ही उपलब्ध है।
सभी तरह के उत्सर्जन में 50 फीसदी की कटौती से भी हम ग्रीन हाउस गैसों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। एरिया एफिशियंशी के लिहाज से कार्बन कम करने के लिए जंगल उगाना बहुत प्रभावी उपाय नहीं है। इसके लिए अगर सोलर सेल्स और विंड टर्बाइन लगाए जाएं, तो वे जंगलों की एक फीसदी जगह भी नहीं लेंगे। सबसे अहम बात यह है कि इन्हें गैर-उत्पादक क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। मसलन, समुद में विंड टर्बाइन और रेगिस्तान में सोलर सेल्स लगाए जा सकते हैं।
जर्नल 'साइंस' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों को तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उपज में कमी की वजह से खाद्य संकट का सामना करना पड़ेगा। तापमान में बढ़ोतरी से जमीन की नमी प्रभावित होगी, जिससे उपज में और ज्यादा गिरावट आएगी। इस समय ऊष्ण कटिबंधीय और उप-ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में तीन अरब लोग रह रहे हैं।एक अनुमान के मुताबिक 2100 तक यह संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्चरों के अनुसार, दक्षिणी अमेरिका से लेकर उत्तरी अर्जेन्टीना और दक्षिणी ब्राजील, उत्तरी भारत और दक्षिणी चीन से लेकर दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और समूचा अफ्रीका इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

No comments:

Post a Comment