Wednesday, October 12, 2011

ओलिव रिडले कछुओं का संरक्षण


ओलिव रिडले कछुओं का संरक्षण
 उड़ीसा सरकार, उड़ीसा तट के समीप सुरक्षा गतिविधियां कर रही है। उड़ीसा राज्‍य सरकार ने सूचित किया है कि उड़ीसा तट और तटीय जल क्षेत्र पर कानूनों के संभव उल्‍लंघन हेतु कारण निम्‍नलिखित हैं:

अस्‍तरोंग का तटीय जल क्षेत्र समुद्री अभयारण्‍य नहीं है। इस क्षेत्र में राज्‍य मात्सियकी अधिनियम जैसे उड़ीसा समुद्री मत्‍स्‍यन विनियमन अधिनियम (ओएमएफआरए), 1982 और उड़ीसा समुद्री मत्‍स्‍यन विनियमन नियम, 1983 के अंतर्गत तटीय रेखा से 10 किलोमीटर की दूरी के अंदर, केवल नवंबर से अगले वर्ष के मई माह तक, कुछ समय के लिए भीशीनी तरीके से मत्‍स्‍यन को प्रतिबंधित किया जाता है। उन्‍होंने बताया कि गहीरमाथा को समुद्री अभयारण्‍य के रूप में नामोदिष्‍ट किया गया है और गश्‍ती कार्यों और अन्‍य सुरक्षा उपायों के लिए कदम उठाए गए हैं। तथापि, यह क्षेत्र विशाल है (1408 वर्ग किलोमीटर से अधिक) और यहां मछली पकड़ने का अत्‍यधिक दबाव है जिसमें स्‍थानीय जहाजों के साथ-साथ, पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, बांग्‍लादेश और थाईलैंड आदि भी शामिल हैं, यहां अक्‍सर कानून का उल्‍लंघन होता है किंतु जहां तक सभंव हो, उपलब्‍ध जनशक्ति और संसाधनों से इन्‍हें निपटाया जा रहा है।

उड़ीसा सरकार द्वारा ओलिव रिडले कछुओं की ऋतु के दौरान, उड़ीसा तट पर अवैध रूप से मछली पकड़ने पर कड़ी नजर रखने और गहन निगरानी के लिए कदम उठाए गए हैं। 
गंगा कार्य योजना
पर्यावरण एवं वन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्रीमती जयंती नटराजन ने कल राज्‍य सभा में एक लि‍खि‍त प्रश्‍न के उत्‍तर में यह जानकारी दी कि‍मलजल के अवरोधन और वि‍पथन, मलजल शोधन संयंत्रों की स्‍थापना, नि‍म्‍न लागत स्‍वच्‍छता नि‍र्माण कार्यों आदि‍जैसी स्‍कीमों के क्रि‍यान्‍वयन के माध्‍यम से गंगा नदी में प्रदूषण उपशमन गति‍वि‍धि‍यां प्रारंभ करने के लि‍ए वर्ष 1985 से गंगा कार्य योजना (जीएपी) क्रि‍यान्‍वि‍त की जा रही है । इस योजना के अंतर्गत अभी तक 896.05 करोड़ रुपये व्‍यय कि‍ए गए हैं और 1064 एमएलडी की मलजल शोधन क्षमता सृजि‍त की गई है ।

फरवरी 2009 में, केन्‍द्र सरकार ने समग्र नदी बेसि‍न दृष्‍टि‍कोण को अंगीकार करने के द्वारा गंगा नदी के प्रदूषण का प्रभावी उपशमन और गंगा नदी के संरक्षण को सुनि‍श्‍चि‍त करने के उद्देश्‍य से एक अधि‍कार सम्‍पन्‍न आयोजना, वि‍त्‍त-प्रबंधन, मॉनीटरन और समन्‍वयन प्राधि‍करण के रूप में राष्‍ट्रीय गंगा नदी बेसि‍न प्राधि‍करण (एनजीआरबीए) का गठन कि‍या । इस प्राधि‍करण ने नि‍र्णय लि‍या कि‍मि‍शन स्‍वच्‍छ गंगा के अंतर्गत यह सुनि‍श्‍चि‍त कि‍या जाएगा कि‍वर्ष 2020 तक कोई भी अशोधि‍त नगरीय मलजल और औद्योगि‍क बहि‍:स्राव, गंगा में न बहाया जाए और आवश्‍यक शोधन और मल-नि‍र्यास अवसंरचना सृजि‍त करने के लि‍ए अपेक्षि‍त नि‍वेश, केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के बीच समुचि‍त रूप से सहभाजि‍त कि‍ये जाएंगे । 
 मरुस्‍थलीकरण, भू-अवक्रमण और सूखे पर राष्‍ट्रीय रि‍पोर्ट तैयार तथा संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन (यूएनसीसीडी) सचि‍वालय को आवधि‍क रूप से प्रस्‍तुत की गई है । आज की तारीख तक, यूएनसीसीडी सचि‍वालय को 4 राष्‍ट्रीय रि‍पोर्टें प्रस्‍तुत की गई हैं - पहली रि‍पोर्ट-2000, दूसरी रि‍पोर्ट-2002, तीसरी रि‍पोर्ट-2006 और चौथी रि‍पोर्ट - 2010 ।

इन रि‍पोर्टों को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड कि‍या गया है । ब्‍यौरा नि‍म्‍नवत है -

कुल शुष्‍क भूमि‍क्षेत्र : 2283 लाख हेक्‍टेयर

शुष्‍क - 508 लाख हेक्‍टेयर

अर्द्ध-शुष्‍क - 1234 लाख हेक्‍टेयर

सूखी उप-आर्द्र-541 लाख हेक्‍टेयर

शुष्‍क भूमि‍के अंतर्गत देश के भू-क्षेत्र की प्रति‍शतता 69.6 प्रति‍शत है । भारत में भूमि‍अवक्रमण की प्रक्रि‍या से गुजर रहा कुल क्षेत्र 10548 लाख हेक्‍टेयर है, जि‍सकी भारत के कुल भू-क्षेत्र की 32.07 प्रति‍शतता है ।

मरूस्‍थलीकरण और भूमि‍अवक्रमण हेतु प्रमुख कारण जल अपरदन, वानस्‍पति‍क अवक्रमण, वायु अपरदन, लवणीयता जल भराव, संदूषण, असतत भूमि‍उपयोग और अनुपयुक्‍त कृषि‍और फसलों की प्रक्रि‍या आदि‍हैं 


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